सपनों को पंख न जाने
कब से लगने लगे थे.
मैंने तो उसे बस देखने
की कोशिश मात्र की थी.
न जाने किस रात को
अचानक से तारों के बीच
जा पहुंचा था मैं.
तैरने लगा था अपने ही
बुने हुए सुनहरे सपनों में
लग रहा था जैसे
सूरज कर रहा था
मेरे ही आने की प्रतीक्षा.
मुझे देखते ही खिल उठा वो
इस नीले आसमान में.
मेरे पलक झपकते ही
छुप गया वो बादलों की ओट में.
मेरे थकने के साथ ही
वो भी ढलने लगा
या फिर यूं कहिये
चाँद को आने देना चाह रहा था
रात होने देने के लिए
ताकि हर कोई देख सके
अपने सपनों की जहाँ को.
कब से लगने लगे थे.
मैंने तो उसे बस देखने
की कोशिश मात्र की थी.
न जाने किस रात को
अचानक से तारों के बीच
जा पहुंचा था मैं.
तैरने लगा था अपने ही
बुने हुए सुनहरे सपनों में
लग रहा था जैसे
सूरज कर रहा था
मेरे ही आने की प्रतीक्षा.
मुझे देखते ही खिल उठा वो
इस नीले आसमान में.
मेरे पलक झपकते ही
छुप गया वो बादलों की ओट में.
मेरे थकने के साथ ही
वो भी ढलने लगा
या फिर यूं कहिये
चाँद को आने देना चाह रहा था
रात होने देने के लिए
ताकि हर कोई देख सके
अपने सपनों की जहाँ को.
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