Wednesday, December 23, 2009

दिख रहा विनाश

जिन चरणों मे शीश झुका  
लेते थे आशीर्वाद
आज वही है रो रहा
और कर रहा विलाप.
अंग - अंग हम  काट  रहे
वो दे रहा हमें श्राप
वो युमना के तीर का कदम्ब हो
या हो चिरियों का रैन बसेरा
जब भी हमने सींचा इसको
दिया एक वरदान
कभी जो मुझको ना छेड़ो
तो है तुमको जीवनदान
मानव को जब से लगा
गर्म खून का स्वाद
पेर्डों को नोच खाया
किया उनका अपमान
हर जगह हो रही असमय बारिश
और पड़ रहा अकाल
किसी को कुछ दिखे या ना दिखे
पड़ मैं देख रहा विनाश.

हिमांशु
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Sunday, December 20, 2009

कब तक ...


इस बेचेनी को
कब तक झेलेगी
पता नहीं... पर,
रोज सुबह उठना
खुद को तैयार करना
उन नजरों से, जो
रोज - रोज टकरातीं हैं
अनायास उनसे, जो घूरती हैं
उसके गर्दन से ...
हर बार आवाज़ लगाती है
बिक जाये माल,
पलेगा अपना और परिवार का पेट
महाजन भी ना तो घूरेगा
और ना ही बोलेगा आना ...
बच्चे अलग रोते होंगे
पति भी पीकर होगा
किसी गन्दी नाली  मे पड़ा
पर यहाँ तो तमाशा बनकर
रही है बेच माल और...

हिमांशु

Thursday, December 17, 2009

महंगाई ! क्या होगा

 हर तरफ मंदी ही मंदी
हर तरफ छटनी ही छटनी
महंगाई है सुरसा मुँह बाये
क्या होगा ...

भीख का कटोरा भी
नहीं गरीबों के पास
महंगाई इतनी बढ़ी कि
धन्ना सेठों ने भी
कर ली है इसकी जमाखोरी
क्या होगा...

पुरानी बोतल मे
भरी जा रही नई शराब
सौ ग्राम की जगह
ले रहे दो सौ का दाम
क्या होगा...

नया साल है आ रहा
महंगाई मे ग्रीटिंग्स बिकेंगे कम
रेस होगा एसमएस और
दो अधर के  मिलनों के बीच
क्या होगा...

हिमांशु

Wednesday, December 16, 2009

खोखलापन

जब देखता हूँ संसार को
मन करता है छोर दूं
अपने इस व्यवहार को
मैं ना तो हताश हूँ
और ना ही निराश
हर पल देखता हूँ
दो पैरों वाला नर पिशाच
जो कभी भी पी लेगा खून
चूस लेगा सारी हड्डियाँ
उस मुर्गे की भांति
जिसे मालूम भी नहीं कि
बांग देने से पहले ही
या तो वह देगा ठंढ में
शरीर को गर्मी
या फिर उस कसाई के हाथ
दिया जाएगा बेच
जिसने उठाया है पेट के खातिर
हत्या करने का पाप

हिमांशु