Monday, February 1, 2010

हे कलियुग !

लड़ रहें हैं
मड रहें हैं
आपस में ही
सड़ रहें हैं
क्या होगा
आने वाली
नस्लों का
खेतों मे लहलहाती
फसलों का
आने वाले
मेहमानों का
जाने वाले
अपनो का .
कृष्ण आने
से रहें
भीष्म बनने
से रहे
विदुर की नीति
उसी काल  तक
गुरु दक्षिणा
कुछ काल तक
शकुनी की
पैदाइश  
बेईमान, भ्रष्ट
खद्दरधारी
आगे- पीछे
बन्दूकधारी
मेहनतकश किसान
उनका न कोई दाम
जब चाहो
जैसे चाहो
मरना होगा
इन्ही को.
न मुआवजा
की मांग
न सरकारी
नौकरी का प्रावधान .
धरती के पुत्र
उसी को समर्पित
हे कलियुग !
तुम्हे प्रणाम .

हिमांशु