Thursday, May 23, 2013

सिगरेट का धुआं

महंगाई  दिनोंदिन बढ़ती जा रही
जैसे बढ़ता था सुरसा का शरीर
रुकने का कोई नाम नहीं
गद्दी पर बैठे हैं कई 'बालवीर'
कहीं दिखाई देती मंथरा
तो कहीं दिखती केकयी।
' सूर्पनखा' भी कम नहीं
यहाँ की ' राज' सभा में
जब देखो तब
किसी के पक्ष में
करती है अपना मतदान.
जनता की कमाई का
आधा हिस्सा तो
बजट में फूँक डालते हैं
बाकी बचे को भी
अपनी एसी कार की टंकी
में डाल देते हैं।
बेचारे इन ' जन' को
क्या मिलता है?
छोटा वाला सिगरेट
मुंह से लगा सुलगाते हैं
और कुछ ही पल में
जिन्दगी को धुंए का
छल्ला बना उड़ाते हैं।

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