Tuesday, September 6, 2011

चश्मा : आर- पार

यहाँ ज़हरीली घास है 'कांग्रेस'
बन्दूक से निकली गोली की तरह
प्राण लेने  को आतुर है घास
जैसे कभी थी सोनिया की सास
जेलों में भरकर किया था नज़रबंद
वैसी ही अब दिख रही दबंग
अनर्गल आरोपों को मढ़ कर 
हाथ-पांव जोड़ कर तो कभी गर्दन पकड़ कर
दिखा रही अपनी सियासी ताकत
कर के हर तरह का त्राटक 
कोई कुछ भी बोले 
जानकर भी मुँह न खोले 
करवा कर दंगा और फसाद 
बांटती है मुआवजे का प्रसाद 
पता नहीं खून है या पानी 
रग-रग में बसी है बईमानी
सड़कों पर दिख रही है भीड़
हर किसी को हो रही है पीर
जाने कब डोलेगा यह आसन 
अब तो राजनीति है मरन्नासन
कभी इस डाल पर बैठ गाते हैं राग 
तो कभी उस डाल पर जाते हैं भाग
मलाई की मति परत देखकर 
चारा का विटामिन भी सोंखकर 
पाते ही मंत्रालय की कुर्सी 
बन जाते हैं गाय जैसे जर्सी 
सब कुछ चलता है मंथर गति से 
जैसे मारे गए हों मति से
हो-हंगामे में चलता है सदन 
नंगा हो रहा संविधान का बदन 
क्यों चिंता करें ये माटी के मूरत 
जब पांच साल बाद ही दिखानी है सूरत 

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