Saturday, February 5, 2011

बेचैनी

कैसा होता दिन है
और कैसी होती रात
अपना तो हर जगह ठिकाना
करता हरदम बात.

करता हरदम बात मैं
रहता हर पल खुश
जीने का यही मूल मंत्र है
नहीं तो जीवन शूल.

जीवन जो शूल बना तो
नहीं किसी के काम
इससे तो पशु अच्छे है
जिन चमड़ी के दाम.

मत जाओ इसके रंग पर
रत रहो अपने कर्म
पालो नहीं किसी भ्रम को
जानो उनका मर्म.

कम ज्यादा तो रीत है
नहीं तो छत कि भीत
जिस पर अच्छा रंग चढ़ाओ
नयन को करता शीत.

नयन जो शीतल होगा जिनका
सुन्दर होगा सपना उनका
सपनों से जगते उम्मीद
तभी तो लेते दुनियां जीत.

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