Monday, January 11, 2010

हाड़ गल जायेगा

हाड़ गल जायेगा
अगर कम्बल नहीं मिला तो
वो बेचारा मर जायेगा
अगर कम्बल नहीं मिला तो
आखिर कब तक कहेंगे ...

हॉस्पिटल में दम तोड़ते गरीब
ठेला पर पड़ा शव
बिना किसी कफ़न के
पूर्व पछवा किसी की परवाह नहीं
फिर पीछे से आवाज़
शव सड़ जायेगा
उठाओ इसे बिना कफ़न के
पर कब तक...

खादी की गर्माहट से तृप्त
जनता को खरीदने में संलिप्त
चाटुकारों से घिरे
पश्मीना उल के शाल से लिपटे
बाँट दिया कम्बल...
दे दिया कुछ सूखी लकड़ी
जितना धीरे चढ़ रहा था
लाल पानी का नशा
उतनी ही तेजी से जल रही थी लकड़ी
पहर भर भी बिता नहीं कि
अलाव के पास ही लुढका
एक गरीब;
पालीथीन के नशे में धुत्त
नशेडी ने कहा
हाड़ गल जायेगा...

हिमांशु

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