Wednesday, December 23, 2009

दिख रहा विनाश

जिन चरणों मे शीश झुका  
लेते थे आशीर्वाद
आज वही है रो रहा
और कर रहा विलाप.
अंग - अंग हम  काट  रहे
वो दे रहा हमें श्राप
वो युमना के तीर का कदम्ब हो
या हो चिरियों का रैन बसेरा
जब भी हमने सींचा इसको
दिया एक वरदान
कभी जो मुझको ना छेड़ो
तो है तुमको जीवनदान
मानव को जब से लगा
गर्म खून का स्वाद
पेर्डों को नोच खाया
किया उनका अपमान
हर जगह हो रही असमय बारिश
और पड़ रहा अकाल
किसी को कुछ दिखे या ना दिखे
पड़ मैं देख रहा विनाश.

हिमांशु
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